धूप में ना निकला करो |

धूप में ना निकला करो |

voice of memories


धूप में ना निकला करो

बादल छा जाएंगे..


तुम्हारी मासूमियत को देखकर

कितनों के होश उड़ जाएंगे..


बादलों का मौसम है इतराया ना करो

बारिश की बूंद टपक पड़े इतराया ना करो..


यह ठंडी हवाएं हैं

जुल्फों को संभाला करो..


बादलों का यह मौसम है

दुपट्टे को उड़ाया ना करो..


काली घनी अंधेरी है यह बादलों की छांव

अपनी जुल्फों को लहरा कर कहर ढाया ना करें..


कैसे कहूं कि बारिशों के संग तुम  भीग जाओ

यह बारिश की  इतरा जाएंगे  तेरे संग..


धूप में निकला ना करो

बादल छा जाएं..


कशिश दिलों की होती है

मोहब्बत हो चुकी होती..


तुम्हें देखकर सुकून मिलता है

इतना कहकर खुद को मना लेता हूं..


धूप में निकला ना करो

काले घने अंधेरे यह बादल छा जाएं..


जाओ छोटे-छोटे बूंदों में

मदहोश होकर भीग जाऊं..


सुकून मिल जाएगा दिल को

यह बारिश की बूंदे एक हर बूंद में कहती है..



हिफाजत कब तक करूं मैं उसकी 
 

सिद्धार्थ शर्मा बोकारो, झारखंड



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