यह चार ग़ज़ल रुला देगा आपको दिल टूटे आशिकों के लिए बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुत है । हिंदी ग़ज़ल - voice of memories

यह चार ग़ज़ल रुला देगा आपको दिल टूटे आशिकों के लिए बेहतरीन ग़ज़ल  प्रस्तुत है । हिंदी ग़ज़ल - voice of memories

  •  तोड़कर दिल मेरा क्या पाया तुमने।

तोड़कर दिल मेरा क्या पाया तुमने।

तोड़कर दिल मेरा क्या पाया तुमने।

मुंह मोड़ कर अपना क्या पाया तुमने...

 

मेरे हंसती दुनिया को।

मुझे रुला कर क्या पाया  तुमने...

 

आंखें देखने को तरसती रह गई।

मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर क्या पाया तुमने...

 

शिद्दत से मोहब्बत है मुझे आज भी तुमसे।

मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर क्या पाया तुमने...

 

रिश्ते नाते सब बेगाने हो गए।

मुझे खुद से बेगाना करके क्या पाया तुमने...

 

हाथों की लकीरों को देखकर।

उम्र भर का साथ ढूंढती थी तुम...

 

किसी और के हाथ को थाम कर।

मुझे अकेला छोड़ कर क्या पाया तुमने...

 

जहां तक नजर जाती है मेरी।

खुद को अकेला पाता हूं मैं...

 

मेरी मोहब्बत थी तुम और आज भी हो।

मुझसे रिश्ता तोड़ कर क्या पाया तुमने...

 

तुम्हारे साथ हर मौसम अच्छा लगता था मुझे।

अब पतझड़ का दीवाना हो गया हूं मैं...

 

मुझे देखकर तुम्हारा यूं मुस्कुराना।

मेरे मुस्कुराहट पर नजर लगा कर क्या पाया तुमने...

 

चाहत इतनी है मेरे दिल में तुम्हारे लिए।

लुटा दूंगा खुद को कहीं किसी मोड़ पर...

 

भर का साथ चाहता था तुमसे।

यूं तड़पता छोड़ कर क्या पाया तुमने...

 

जब भी मिलती थी इस कदर  इश्क हो जाता था।

ना रातों को नींद दिन में चैन पाता था...

 

कितनी रात बिताई साथ हमने।

मेरी नींदों को चुराकर क्या पाया तुमने...

 

मैं खुश था दीवाना था पूरा परिवार मेरे साथ था।

सब से बेगाना कर दिया तुमने...

 

सांसे थम से जाती थी जब तुम।

मुझसे जुदाई की धीमी धीमी बात करती थी...

 

सो दफा नहीं बोला करते एक बात को।

मेरी बातों को नजरअंदाज करके क्या पाया तुमने...

 

अब यह सांसे बची हैं इस जिस्म पर।

और लगता है धड़कन में कुछ हलचल सी होती है...

 

सारी खुशियां मुझसे थी तुम्हारी

जब मिलो तो बता देना मुझे छोड़कर क्या पाया तुमने...

 

  •  कितनी मोहब्बत है मुझे तुमसे कभी पूछो ना ,

कितनी मोहब्बत है मुझे तुमसे कभी पूछो ना ,

कितनी मोहब्बत है मुझे तुमसे कभी पूछो ना..

यूं तन्हाइयों में छोड़कर चला जाना..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

तुम्हें एहसास करता हूं हर एक पल में..

वह तुम्हारी बातें और तुम्हारी बचकानी हरकत है..

मेरे फोन को काट देना..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

पता नहीं कब इतनी बड़ी हो गई तुम..

मेरी मोहब्बत में आज भी प्यारी बच्ची हो तुम..

जान कहकर पुकारता था तुम्हें मुस्कुरा देती थी तुम..

मेरा नंबर ब्लॉक कर के रखा है..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

हर घड़ी बातों बातों में तुम्हारा जिक्र करना..

अकेले तन्हाइयों में मुस्कुरा लेना तुम्हारी यादों के सहारे..

तुम्हारी छोटी-छोटी बेसुध बातों को नजरअंदाज कर देना मुस्कुराकर..

मेरे और एक नजर ना देख ना तुम्हारा..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

क्या तुम्हें याद है वह मेरी पहली मुलाकात तुम्हें..

यूं मेरा तुम्हारे करीब जाना..

मुस्कुराना और तुमसे तुम्हारा हाल पूछ लेना..

आज तरस जाता हूं तुम्हारी आवाज को सुन लेने के लिए..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

तुम्हारी यह प्यारी हसीन आंखें..

तुम्हारे बोलते हुए लफ्जों को एक पल भी आराम नहीं..

मैं खामोश मुस्कुराता सुनता रहता था..

मेरे मैसेज का एक भी जवाब ना मिलना..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें..

 

 

रात भर फोन से बातें करना..

मेरा कुछ भी बोलना और तुम्हें लगता क्या बकवास करना..

तुम्हारा बार-बार मुझसे पूछना ब्लॉक बना रहे हैं ना..

बहाने करके कहते थे तुम..

शाम में बात करते हैं ना..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

मेरा तुमसे यूं प्यार से पूछ लेना..

क्या चलोगी कहीं घूमने के लिए..

मेरी बात खत्म होने से  पहले तुम्हारा इनकार करना..

अब तो सारी बातें खत्म..

क्या अच्छा लगता है तुम्हें...

 

 

  • कि तुम्हारी मोहब्बत ने क्या दिया दर्द के सिवा ,

कि तुम्हारी मोहब्बत ने क्या दिया दर्द के सिवा,


कि तुम्हारी मोहब्बत ने क्या दिया दर्द के सिवा..

हर खुशी गम में तब्दील हो गई |

 

आशिक थे दीवाने थे कितने तुम्हारे प्यार में..

हमारे जैसा कोई मिला ना तुझे |

 

तुम्हारी मोहब्बत ने क्या दिया दर्द के सिवा..

हर खुशी गम में तब्दील हो गई |

 

चाहते इस कदर थे हम तुम्हें..

तुम्हारी चाहतों ने क्या दिया गम के सिवा |

 

नजरें उठाकर देखूं और दो कदम  चलूं मैं..

तुम्हारी यादें घेर कर बैठ जाती है मुझे |

 

ऐसी भी क्या जुस्तजू है तुम्हारी यादों को मुझसे..

दर्द के सिवा कुछ दिया नहीं कभी इन्होंने |

 

कि जिंदगी सिर्फ तुमसे है ऐसा मुझे लगता था..

तुम्हारी चाहतों ने क्या दिया गम के सिवा मुझे |

 

कलम है जो साथ नहीं छोड़ते हमारा..

लिख देता हूं जो दिल पर गुजर जाती है |

 

ऐसी भी क्या जुस्तजू है तुम्हारी यादों को मुझसे..

दर्द के सिवा कुछ दिया नहीं कभी इन्होंने |

 

किस कदर पागलपन छाया है मुझ पर तुम्हारा..

तुम्हारी तस्वीर के सिवा कुछ देखा नहीं  हमने |

 

यह कलम है मेरे पास जो साथ नहीं छोड़ती मेरा..

कब का दम निकल चुका होता |

 

तुम्हारी यादों ने क्या दिया मुझे..

गम के सिवा कुछ और उम्मीद नहीं इनसे |

 

अगर ऐसे फितरत थी तुम्हारी..

तपती गर्मी में गर्म हवा का झोंका बन जाती |

 

दो शब्द  बातें कर लेता अकेले में..

तुमसे नजरें नहीं मिलती |

 

वह तुम्हारा मेरे पास से गुजर जाना याद है मुझे..

मेरी और देख कर मुस्कुराना याद है मुझे |

 

तुमसे नजर नहीं मिलती मेरी..

आज तन्हाइयों से रिश्ता नहीं होता मेरा |

 

दो शब्द बातें कर लेता अकेले में अगर'..

आज तन्हाइयों से रिश्ता नहीं होता मेरा |

 

यह नदियों का पानी किनारे पर बैठा..

वह पीपल की छांव बहुत सुकून देती थी मुझे |

 

कैसे बदनाम करूं उस पीपल के छाव को..

गलती हमारी थी नजरे भटक गई तुम तक |

 

  • पूछने को जी चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो। 

पूछने को जी चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो।


पूछने को जी चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो।

याद जाता है तुम्हारा छोड़ कर चला जाना..

 

एक नजर देख लो तुम्हारी हालत मेरे बगैर कैसी है।

याद जाता है तुम्हारा मुंह मोड़ कर चला जाना..

 

तुम्हारी आवाज सुनकर तुम्हारी तबीयत बता देता  था मैं।

याद है मुझे तुम्हारे लफ्जों को दिल में चुभो कर तुम्हारा चला जाना..

 

कैसे वापस ले आओ तुम्हें।

कसम देकर गई हो मेरी ओर मुड़कर ना देखना..

 

पूछने को जी चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो।

याद जाता है तुम्हारा छोड़ कर चला जाना..

 

मेरी हथेली को पकड़कर अपने गालों पर रख लेना।

याद है मुझे वह मोहब्बत के दिन जिसे तुम बद्दुआ समझती थी..

 

घंटों उस पेड़ कर छांव में बैठकर टहनियों को नजरों से टटोलना।

एक दूसरे की निगाहों में देख कर लफ्जों से कुछ ना बोलना..

 

एक नजर भर कर देख लेना चाहता हूं तुम्हें।

तुम्हीं ने कहा है नजरें तबाह कर चुकी है मुझे..

 

शिकायत नहीं करूं तो क्या करूं अब।

कोई कारण तो बता देती मुझे छोड़कर वह तेरा जाना..

 

जिंदगी भर तुम्हें अपना बना लेने की।

जद्दोजहद में लगा रहा और तुम छोड़कर चली गई..

 

पूछ लेने को दिल चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो।

तुमने कसम जो दी है मोड़ करना मेरी और देखना..

 

हाल--दिल किससे कहूं कुछ समझ नहीं आता मुझे।

आज उसी पेड़ के छांव में बैठा हूं जहां तुम मुझसे बातें किया करती थी..

 

कैसे भुला दूं तुम्हारा मेरे हाथों पर हाथों को रखकर यूं कुछ कुछ बोलना।

झूठी बातों को कह कर मेरे मन को टटोलना..

 

आंखों में आंसू भर आते हैं आज भी मेरे।

वह यादें तुम्हारी पहली मुस्कुराहट की जब दिल को छू कर छलनी कर देती है..

 

अब घुटन सी होने लगी है यह जिंदगी तुम्हारे बगैर।

पूछ लेने को दिल चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो तुम..

 

मैं तुम्हें गलत नहीं कहता पर इतनी सी बात है।

दिल को बुरा लगा  मुझे तुम्हारा यूं बेवजह छोड़ कर चला जाना..

 

महसूस करोगी।

क्या कुछ खोया है मैंने तुम्हें खोने के बाद..

 

मुस्कुराहट में जवाब छुपा कर रख लेती थी तुम 

क्या कुछ पाया था मैंने तुम्हें पाने के बाद..

 

सब से छुपा कर  तुम्हारी तस्वीर आज भी रखी है मेरी किताब पर।

तुम्हारे हथेली पर रखकर पूछ लेना चाहता हूं कैसी हो कहां हो किस हाल में हो तुम..

 

अलग बात है तुम्हारा मुंह मोड़ कर चला जाना बस एक बात बता दो।

क्या मेरी याद आती है तुम्हें कभी यह ठंडी हवाओं से जुल्फें  लहराती  जब..

 

पूछने को जी चाहता है कहां हो कैसी हो किस हाल में हो तुम।

याद जाता है वह तुम्हारा मुझे छोड़ कर चला जाना..

 

नाराज नहीं हूं तुमसे बस इतना बता देती।

क्या कमी थी मेरी मोहब्बत में  कोई खता बता देती..

 

सुनो गलती नहीं थी मेरी खुद को गलत साबित करता हूं मैं आज।

क्या लौटकर जाओगी तुम मेरे पास..

 

क्या गुजरती है मुझ पर कभी पूछो मुझसे 

मुझे मालूम है तुम लौट कर नहीं आओगी दिल को तसल्ली दे रहा था..

 


लेखक- सिद्धार्थ शर्मा  , बोकारो झारखंड

 

धन्यवाद आप सभी का

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