हिफाजत कब तक करूं मैं उसकी
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हिफाजत कब तक करूं मैं उसकी |
हिफाजत कब तक करूं मैं उसकी..
लफ्जों से बयां हो जाए वह एक से थोड़ी ना है..
हकीकत कैसे मान लू उसको..
जो अपने होते हैं सताया नहीं करते..
इस कदर मोहब्बत है मुझे उससे..
उसके कड़वे बोल तीर से चुभ जाते हैं..
कैसे हकीकत मान लू उसको..
जो ख्वाबों में आने से पहले ही चले जाते हैं..
हिफाजत करूं तो अब किनकी करूं हथेली पर क्या रखा है..
दुपट्टा संभाल रखा था जिन हाथों ने..
कुछ जख्म अभी बाकी है मरहम लगा रखा है..
मैंने कहा उससे..
बेरहम लव्स थे मेरे..
होठों पर जिंदगी संभाल कर ..तुमने माचिस कहां रखा है
बस दो वक्त बचे थे मुलाकात हो हमारे..
शाम काली, घनी, अंधेरी, रात हो चुकी थी..
नदी के पार जाना है कश्ती को संभाल रखा है..
मन में छिपी बात आने लगी है जुबां पर..
जिंदगी का सहारा झूठ होने लगा है..
रिश्ते कब के टूट चुके होते..
शुक्र है खुदा का ..
रिश्ते को हमने संभाल रखा है..
हमदर्दी - प्यार और यह रिश्ते..
चलो ठीक है..
मोहब्बत का नाम भी क्या कमाल रखा है..
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हिफाजत कब तक करूं मैं उसकी |
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