निगाहों को छेड़ देती है || ये जुल्फों की नजदीकीया || ग़ज़ल ||

 यह जुल्फें तुम्हारी



 यह जुल्फें तुम्हारी

 शैतान बहुत है


 निगाहों को इस कदर छेड़ देती है

 मानो सिर्फ इसका हक है


 हमने जब भी देखा तुम्हें पर्दे में देखा

 निगाहों को मेरी तरफ आ जाने दो


 जुल्फों को हटाओ नजरों को मिलाओ

 कुछ गुफ्तगू हो जाने दो


 यू मोहब्बत के रास्ते आसान नहीं होते

 कुछ फासला मैं चलूं  तुम साथ तो दो 


 जितनी बार देखा तुम्हें करीब से गुजर जाते

 मोहब्बत के इन पंछियों को एक नए पर मिल जाते


 यह राधा कृष्ण की धरती है

 तुम्हें तो पता है राधा कितनी कृष्णा पर मरती है


 कभी जब खुद को तुम्हारे करीब ले जाने की कोशिश करता हूं

 तुम्हारी खामोश लबों से ना जाने क्या कुछ महसूस करता हूं


 कुछ बातें रहने भी दो मुलाकात करनी बाकी है

 यह इश्क मोहब्बत के सिलसिले चलते रहेंगे

 बहुत शरारत है बाकी है...









एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Advertising

Below Post Advertising

Advertising

World Fresh Updates