जिसको आंखों से दिल में उतारा कभी ।
जिनको आंखों से दिल में उतारा कभी ।
क्या पता था कभी नजरों से ही उतर जाएगा । ।
चोट खाकर भी मैं मुस्कुराता रहा ।
साज टूटा मिला पर बजाता रहा । ।
एक दिए कि लो थी चुराई कभी ।
जोत से जोत लेकिन जलाता रहा । ।
राह भट्ट की हवा को जरा मोड़ कर ।
मैं सही रहा उसको चलाता रहा । ।
जिसको आंखों से दिल में उतारा कभी ।
गैर बाहों से मुझ को जलाता रहा । ।
दिल तो दरिया नहीं था मगर दोस्तों ।
प्यास कितनों की मैं बुझाता रहा । ।
अगर खता हो गई तो अदब से बहुत ।
मैं सजा के लिए सर झुकाता रहा । ।
चोट खाकर भी मैं मुस्कुराता रहा ।
रूठे मिले मुझे बहुत से मैं सबको मनाता रहा । ।
जोर जालिम का जब भी बड़ा सामने ।
होकर बेफिक्र सर को उठाता रहा । ।
बहुत से लोग ऐसे होते हैं हमारी जिंदगी में जिन पर हम भरोसा कर बैठते हैं जाने अनजाने में चाहे वह जिस रूप में हमें मिलते हैं उनका रिश्ता हमसे कुछ भी होता है दोस्ती का दिल से या फिर पारिवारिक रिश्ता कुछ भी हो और अगर हम जाने अनजाने में उन पर भरोसा कर बैठते हैं और उनके द्वारा तोड़ी गई जो हमारे बीच की विश्वास होती है उस टूटी हुई विश्वास पर दिल सीज सा जाता है कहने का मतलब यह है कि दिल बहुत ही बेचैन और दर्द भरा रहता है उनके प्रति जो विश्वासघात करते हैं तो वह कभी-कभी ऐसी गजलों को पढ़ने के बाद लगता है कि हमें शुरुआत ही नहीं करनी चाहिए ऐसी रिश्तो की जिनका अंत इस तरीके से विश्वास को तोड़ने में छोड़ने वाली हो ।