निकल पड़ा सफर पर |

निकल पड़ा सफर पर |


निकल पड़ा सफर पर..

तई हो रही थी दूरियां..



नजर में आते हैं लोग..

निगाहों से छलक रखी थी मजबूरियां..



जितना देखा  उतना सोचा..

कैसी है यह अपने परिवार से दूरियां..



आखिर क्यों खत्म नहीं होती..

इन गरीबों की मजबूरियां..



एक बुजुर्ग बैठे थे किनारे पर..

आंखों के नीचे पड़ी थी   झुरिया..



सफर में  ठहरा आराम को..

मदद के लिए लोग हैं सिर्फ नाम को..



मैंने पूछा अकेले बैठे हैं..

क्या इस ज़माने से रूठें हैं..?


अगला भाग मे........


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