अब रही ना कहीं यह बेचारी गजल ।
तुमने आंखों में जो थी उतारी गजल ।
रात पढ़ ली हमने तुम्हारी गजल । ।
यूं ही लड़ते रहेंगे तो हंस पाएगी ।
ना हमारी गजल ना तुम्हारी गजल । ।
पत्थरों में दबी घास जी जाएगी ।
मिल गई धूप की जो सावरी गजल । ।
गीत के कितने मुखड़े हैं पीछे पड़े ।
आई जब से शहर में कुंवारी गजल । ।
जाम में तो छलकती रही कल तलक ।
खेलती खेत में अपनी पारी गजल । ।
रेत को एक चुम्बन नदी दे गई ।
मां ने बेटे के सर जो उतारी गजल । ।
रहनुमाई भी करने लगी गांव में ।
अब रही ना कहीं यह बेचारी गजल । ।
मुफलिसी में भी पढ़ती तरन्नुम हुए हैं ।
औ भरी नाव में चुप है भारी गजल । ।
तुमने आंखों में जो थी उतारी गजल ।
रात पढ़ ली वह हमने तुम्हारी गजल । ।