अब रही ना कहीं यह बेचारी गजल ।

 अब रही ना कहीं यह बेचारी गजल ।


तुमने आंखों में जो थी उतारी गजल ।

रात पढ़ ली हमने तुम्हारी गजल । ।



यूं ही लड़ते रहेंगे तो हंस  पाएगी ।

ना हमारी गजल ना तुम्हारी गजल । ।



पत्थरों में दबी घास जी जाएगी ।

मिल गई धूप की जो सावरी गजल । ।



गीत के कितने मुखड़े हैं पीछे पड़े ।

आई जब से शहर में कुंवारी गजल । ।



जाम में तो छलकती रही कल तलक ।

खेलती खेत में अपनी पारी गजल । ।



रेत को एक  चुम्बन नदी दे गई  ।

मां ने बेटे के सर जो उतारी गजल । ।



रहनुमाई भी करने लगी गांव में ।

अब रही ना कहीं यह बेचारी गजल । ।



मुफलिसी में भी पढ़ती तरन्नुम हुए हैं ।

औ भरी नाव में चुप है भारी गजल । ।



तुमने आंखों में जो थी उतारी गजल ।

रात पढ़ ली वह हमने तुम्हारी गजल । ।


  • हम जब  छोटे छोटे बच्चे हुआ करते थे। गजल कि  शाम हुआ करती थी।बड़ी-बड़ी महफिले सजा करते थे और बेशुमार लोग इकट्ठा होकर के एक जगह पर और ग़ज़ल के महफिल में आनंद लिया करते थे  । एक से एक  रईस लोग ग़ज़ल के लिए आया करते थे दूर दराज से लोग और सुनने के लिए भी  इकट्ठा होते थे । जो ग़ज़ल लिखते थे पढ़ते थे बोलते थे उनकी बात ही कुछ और अलग थी लेकिन जो लोग सुनने के लिए आते थे । वह लोग सिर्फ वाहवाही बांध कर के सुनते थे और मजा लेते थे गजल का आनंद लेते थे । जिंदगी का यह थी ग़ज़ल की पुरानी कहानी फिर मिलेंगे और फिर बताएंगे किसी अलग ग़ज़ल में यह दिल की कुछ बातें  ।



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