रुक जाओ घर हमारे, बहुत रात हो गई |

 रुक जाओ घर हमारे, बहुत रात हो गई,  ruk jao ghar hamaare, bahut raat ho gaee.


रुक जाओ घर हमारे, बहुत रात हो गई,

सायद तुम्हारे गांव में कोई बात हो गई । ।



फूलों की महक बांटने निकली थी हवा कल,

सुनते हैं हवा को ही हवालात हो गई । ।



फांसी के वक्त थामली बच्चे ने उंगलियां ,

जिंदगी की मौत से दो बात हो गई । ।


 

बच्चे ने बनाया था वह मिट्टी का घरौंदा,

बारिश की धार मौत की सौगात हो गई । ।


 

बीती हुई बचपन की घड़ी याद जो आई,

कागज की नाव थी, वही बरसात हो गई । ।



कटते हुए पेड़ों ने कहा गांव से गिरकर,

हमने तो बख्शी छांव, यह क्या बात हो गई । ।



जाने वाले शहर को बेकरार,

खेतों की हरियाली पूछती रहेगी यह क्या बात हो गई । ।



एक एक कर काट डाला पूरा जंगल,

जहां देखा धूल की बरसात हो गई । ।



याद है बच्चे के हाथों में लकड़ी का खिलौना,

क्या बचा है शहर में बस रोना और चिल्लाना । ।



हिम्मत हार चुका है पूरा शहर लुटेरों से,

रुक जाओ घर हमारे बहुत रात हो गई  । ।



यह चमकते हैं शहर, सितारे नहीं है,

यहां किसी की गर्दिश में तारे नहीं है । । 


  • समय के साथ है ऐसे ही ग़ज़ल और इनकी मुख्य विषय में बदलाव होते रहेंगे और काफी अच्छा लगता है कि समय के साथ अलग-अलग विषयों पर चर्चा करना और इनसे जुड़े कारणों को 1-2 लम्हों में समेट देना धन्यवाद । 

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