टूटी हुई गुड़िया का असर देख रहे हैं ।

 टूटी हुई गुड़िया का असर देख रहे हैं ।



हम देखने वालों की नजर देख रहे हैं..

शीशे पे पत्थरों का कहर देख रहे हैं ।



इतराओ ना यूं डाल के कागज का यह लिबास..

बारिश के बाद का वह असर देख रहे हैं ।



उल्टी हवा के दौर में परचम उलझ गए..

डंडे बने झंडो का शहर देख रहे हैं  ।



मिलकर गले भी दिल को तसल्ली नहीं मिली..

आंखों में जो छुपा है जहर देख रहे हैं ।



बारिश हुई तो वह पत्थरों के साथ ही हुई..

मिट्टी के घरों में भरा डर देख रहे हैं ।



जाने के बाद भी उन्हें दो बूंद ना मिली..

टूटी हुई गुड़िया का असर देख रहे हैं ।



कागज की नाव खेलते बच्चे ठिठक गए..

उड़ते हुए बालू में भंवर देख रहे हैं ।



लूटे थे जिसने रात परिंदों के घोसले..

सजदे में  उसके सारा शहर देख रहे हैं ।



थाने में की फरियाद और कत्ल हो गए..

कोतवाल से मिलने का असर देख रहे हैं ।



हम देखने वालों की नजर देख रहे हैं..

शीशे पे पत्थरों का कहर देख रहे हैं ।



कभी-कभी सच में बहुत सारी बातें समझने के लिए थोड़ा वक्त लगता है । और जब तक बातें समझ में आती है तब तक उस गज़ल को पड़े वक्त हो चुका होता है इसलिए दिल करता है कि एक बार फिर से पुरानी यादें ताजा करें और उन गजलों को याद करें जो बेवक्त हमने पढ़ा था कभी गजल एक सहारा है यादों को ताजा करने का और बहुत सारी बातें होंगी धीरे-धीरे....


ऐसी ऐसी और भी बेहतर ग़ज़ल पढ़ने के लिए नीचे दिए गए  कॉलम नहीं आप क्लिक करके पढ़ाई कर सकते हैं आगे की  बहुत ही अच्छी-अच्छी गजलें  ।


खुली किताब


तनहाई


दर्द भरी ग़ज़ल


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