खुशियां कैसे लाता घर में ।

 खुशियां कैसे लाता घर में ।



खुशियां कैसे  घर लाता में आंगन के वीराने में

आंसू कब तक शिक्षक रहे थे बिस्तर के सिरहाने में..



रूमाल ऊपर नाम किसी का कड़ा हुआ था हाथों में 

और जमाना मांग रहा था उसको ही नजर आने में..



सब ने अपना हिस्सा पाया मैं खाली का खाली था 

बांध दिया था मेरा हिस्सा मौसम ने अफ़साने में..



आंखों के डोरी में सपने दंगे हुए हैं गुड्डी से 

जितनी खींचो उतनी जाती दूर कहीं अनजाने में..



दीवारे कच्ची मिट्टी की उन पर बारिश का मौसम

कसम तुम्हें हैं कभी ना करना पत्थर के बरसाने में..



मुस्कान है भाटी चौराहे फूलों को बाजारों में 

शाम हुई तो दर्द बांधकर लौटे हैं तहखाने में..



सब आए हैं आंख भीगा कर रोमालो का गिला कर

एक नहीं आया वह होगा अपने को दफनाने में..



फटी पुरानी चादर कितने  बंदों के बोझं सहे

रात काट दी हमने अपनी चादर को समझाने में..



जितना मुझे मिला मैंने उसे मुकद्दर मान लिया

बाकी दामन नजर कर रहे हम उनके  शुकराने में..



हमने जिन्हें गुलाब दिया था उन हाथों में पत्थर है

अगर देखना यही लिखा था बेहतर है मर जाने में..



सदियों से देखने में आया है और जब से गजल बनी है लोगों का यही मानना है कि गजल जितनी पुरानी हो आनंद उतना आता है  ।

बस थोड़ी समझ होनी चाहिए उर्दू भाषा का जो ग़ज़ल में काफी ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है ।


ऐसी ऐसी और भी बेहतर ग़ज़ल पढ़ने के लिए नीचे दिए गए  कॉलम नहीं आप क्लिक करके पढ़ाई कर सकते हैं आगे की  बहुत ही अच्छी-अच्छी गजलें  ।


खुली किताब


तनहाई


दर्द भरी ग़ज़ल


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