नई दिल्ली की बेटी श्रद्धा जिसे 35 टुकड़ों में काट दिया गया उस छोटी सी प्यारी सी जिसकी उम्र अभी नहीं हुई थी दुनिया देखने की उस बच्ची के लिए दो शब्द ।
'' मां ने क्या सोचकर पाला छोटी बच्ची को और कर दिया बड़ा
पिता ने कितनी लाडकी और जिंदगी लंबी हो मां देती रही दुआ''
दो अक्षर ज्ञान के सागर में डूब जाए और कुछ हासिल कर ले बस यही उम्मीद थी ।
एक बात और कि किसी भी परिवार के सदस्य में कोई भी व्यक्ति अगर हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला जाता है तो वह परिवार ही समझ सकता है कि उसकी स्थिति बद से बदतर कैसे
होती है क्योंकि इंसान बात करें ना करें मनमुटाव रखें लेकिन उसकी कमी हमेशा मन में दिल में और एहसासों में महसूस की जा सकती है श्रद्धा के घर वाले पता नहीं किस तरीके से खुद को संभाल रहे होंगे मैंने उनसे कभी पर्सनली नहीं मिला हूं लेकिन मैं उनका दर्द भलीभांति समझ सकता हूं ।
अभी के जो हालात हैं कहीं भी किसी के भी परिवार के कोई भी सदस्य मुझे नहीं लगता कि अच्छे तरीके से सुरक्षित है ।
''जिंदगी के हर मोड़ में खतरा ही खतरा है..
ना जाने किस से छुपा और कैसे छुपाता रहूं खुद को और अपने परिवार को यह सोच कर चलता रहा हूं मैं..
जिंदगी बीत रही है उम्र के किताब में लेकिन कभी डरता तो कभी संभलता रहा हूं,,
कब किस वक्त बेवक्त क्या हादसा हो जाए यह सोचकर घबराता रहा हूं मैं''
महरौली के एक घर में भाड़े पर रह रहे थे यह दो प्रेमी जोड़े जो किसी धर्म और किसी जाति के बंधन में नहीं थे इतने अंधे हो चुके थे एक दूसरे के प्रेम में या फिर आप कह सकते हैं एक दूसरे के वासना में इतने अंधे हो चुके थे कि एक दूसरे के संपर्क में आकर के यह लोग अपने परिवार से बिना इजाजत के बिना शादी के बंधन में बंधे एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध और मन के संबंध के कारण एक-दूसरे के साथ महरौली में नई दिल्ली में यह लोग रह रहे थे श्रद्धा और आफताब । सालों से एक दूसरे के संपर्क में रह रहे इन दोनों प्रेमी जोड़े में ना जाने ऐसी कौन सी घड़ी आई कि ने आफताब 35 टुकड़े कर दिए श्रद्धा के और वह भयानक खौफनाक दिन 18 मई था ।
प्रशासन के हिरासत में अपराधी आफताब जब हत्थे चढ़ा तो उसने बताया कि मैंने पहले श्रद्धा को बेरहमी से मारा और जब वह बेसुध होकर गिर गई तो मैंने उसके छाती पर चढ़कर उसका गला दबाया और गला दबाकर मैंने उसकी जान ले ली और जान लेने के बाद मैंने 35 टुकड़े किए और 35 टुकड़े करने के बाद मैंने एक 300 लीटर वाले क्षमता के फ्रिज ऑर्डर किया और फ्रिज ऑर्डर करने के बाद मैंने सारे टुकड़ों को उसमें रखा और बारी बारी से मैंने अलग-अलग जगहों पर उस टुकड़ों को फेंका | किसी की घर की बेटी थी वह |कोई उसे जान से ज्यादा प्यार करता था कोई उसे जान से ज्यादा चाहता था छोटी बच्ची से उसे एक उम्र तक पहुंचाने में कितनी समय बीत गई होगी उनके माता-पिता को लेकिन आखिर हाथ क्या आया शरीर के टुकड़े इसलिए | मैं एक बात कहना चाहता हूं आप सभी से अपने घर में बच्चों को अच्छा ज्ञान दें | उन्हें किन को अपना मित्र नहीं बनाना है यह आप घर में ही बता सकते हैं पैसे के लिए आप इतने अंधे ना बने कि अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलना ना सिखा पाए ऐसे पैसे किस काम के जो आपके बच्चे सही से सही रास्ते पर ना चल सके यह दो शब्द हमारे अपने हैं क्योंकि हमारे घर में भी छोटे-छोटे बच्चे हैं आपके घर में भी छोटे-छोटे बच्चे हैं इसलिए आप सभी से निवेदन है कि बच्चों को सही राह पर चलना सिखाए किन से मित्रता करनी है किन से दूरियां बनाना है | यह सब आप ध्यान में रखें और बच्चों को भी सिखाए यह बहुत ही जरूरी है अभी के वर्तमान समय में हो रही विभिन्न प्रकार की घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए बड़े लोगों की बात छोड़िए आप मध्यम वर्ग के लोग हैं जो इसे पढ़ रहे हैं वह इस बात को समझें कि किस तरीके से लोगों को गुमराह करके मौत के घाट उतार दिया जाता है तो इस तरीके के घटनाओं से बचने के लिए एकमात्र रास्ता है कि आप अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलना सिखाए और दिशा निर्देश दे उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है धन्यवाद आप सभी का फिर से मिलेंगे किसी और लेख में|