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मेरे चंचल मन यह कैसा पागल दौर है।
जिसके खयालों में खोए हो उसकी मंजिल कहीं और है।।
सूरज छूने की कोशिश में हाथ जल जाएंगे।
टूट कर बिखर गए तो कौन तुझे संभालेंगे।।
बिगड़ी किस्मत पर चलता अब किसका जोर है।
थोड़ी सब्र कर यह वक्त अभी थोड़ा कमजोर है।।
बेदर्द जमाने में दिल की बात ना किया करो।
कौन सुनेगा सताए तेरी बेजुबा ही रहा करो।।
पेड़ों से गिरे फूलों पर कौन करता गौर है।
मन के अंदर एक बेचैनियों का शोर है।।
अपनी जिंदगी बनी है ठोकर खाने के लिए।
अब एक और ठोकर काफी है मर जाने के लिए।।
गम का दरिया हूं मैं इसका कोई चोर नहीं।
उम्र बीत जाने पर सांसो का कोई जोर नहीं।।