कैसे कैसे लोग हैं यहां कैसा समाज है..
रातों को दिन कहता है इनका उल्टा मिजाज है।
अमन चैन की बातें करते हैं यह सुकून छीनने वाले..
उजली उजली बदन है इनके दिल है काले काले।
हंसते को रुलाते रहना इनका रिवाज है..
रातों को दिन कहते हैं इनका उल्टा मिजाज है।
रास्ता इन्हें मालूम नहीं पर आगे आगे चलते हैं..
कदम कदम पर बातों बातों में अपना रंग बदलते हैं।
अंत इनका कैसा होगा जब ऐसा आगाज है..
रातों को दिन कहते हैं इनका उल्टा मिजाज है।
दिल के बीच में दीवारें उठाना इनका तो अपना धंधा है..
देखकर भी नहीं देखता यह समाज कितना अंधा है।
रहम कहां-कहां करेंगे यह इनका तो सितम बेहिसाब है..
रातों को दिन कहते हैं इनका उल्टा मिजाज है।