हमसफर तुम होते तो आशियां दूर नहीं था।
शायद बहारों का मौसम किस्मत को मंजूर नहीं था।।
काश अपनी खुशी देकर तेरा सारा दर्द ले लेता।
तेरी आगोश में अक्स बहाकर पल भर में सो लेता।।
ख्वाब में भी तुमसे जुदा होना मेरा तसव्वुर नहीं था।
शायद बहारों का मौसम किस्मत को मंजूर नहीं था।।
अभी महकेगा गुलिस्तान सावन बरसेगा।
तेरे हिज्र में बेकरार मन जन्मो तक तरसेगा।।
जाओ सनम तेरी वफा पर मुझे भी कम गुरुर नहीं था।
शायद बहारों का मौसम किस्मत को मंजूर नहीं था।।
गुजरे जमाने को याद कर के आंसू तुम ना बहाना।
आशिकी में हर किसी का पुरा ना होता अफसाना।।
तेरा भी कसूर नहीं हालात से मैं भी कम मजबूर नहीं था।
शायद बहारों का मौसम किस्मत को मंजूर नहीं था।।