गरीब क्या करें गरीबी का।


गरीब क्या करें गरीबी का,

 भूखे बच्चों तिलमिला रहे नसीबी का..😔


सोच में बैठा,

 क्या करूं इस शरीफी का..😔


अब क्या करें आखिर परिवार वाले,

 हालात सिर्फ किसी एक ने नहीं हम सब ने मिलकर बनाए हैं..😔


शराफत ही इंसान है,

 हम इंसानों  ने तो गिद्ध  बनके इनके मांस खाए हैं..😔


बुरा लगता है बुराई सुनकर,

 इंसान हूं जमाना बीत गया इंसान की अच्छाई  सुनकर..😔


 किसने किसको क्या कहा बाद की बात है,

 आपने मुझसे क्या कहा यह तो आज की बात है..😔


आखिर परिंदे क्यों नहीं भरते रात में उड़ाने,

 धक्के देकर चलते हैं मंजिलों को पाने..😔


किससे कहूं क्या कहूं अब कुछ बचा भी है क्या,

 इंसान इंसान को नोच रहा गिद्ध की तरह..

 इसमें इंसानियत की रजा भी है क्या...😔


कोई इतना तो बता दो,

 दर्द इतना मिले गरीब होने पर..

 तो इस दर्द की सजा भी है क्या...😔

जब बच्चे सामने दौड़ कर आते हैं और हाथ फैला देते हैं,

 हमारा भी एक बचपन था याद दिला देते हैं...😔


फर्क होता है सुनने में और बताने में,

 जमाने वालों को शाम की हवा मस्तानी लगती होगी..

 कोई अपने घर में भूखा  पेट सो जाता है यह सिर्फ कहानी लगती होगी...😔


आंसू देखा है कभी छोटे बच्चों के आंखों में,

 जिनका बचपन बीत जाता है मांग कर खाने में...😔


छोटी सी मुसीबत,

 सोचते हो छुटकारा पा लूं दुनिया के मेले में.

 इंसान हो इंसान की मदद की भावना रखो..

 कहते हो क्यों,, पड़ू मैं इनके झमेले में...😔


गरीब क्या करें गरीबी का,

 भूखे बच्चों तिलमिला रहे नसीबी का..😔


‌Continue....


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