बहुत अजीब है जिंदगी
कई बार टूट कर जुड़ता रहा हूं मैं..
मुस्कुराया बहुत है झूठी मुस्कान
अंदर से रोता रहा हूं मैं..
भीड़ में भी खुद को अकेला पाकर
चुपचाप चलता रहा हूं मैं..
अपने गमों को बयां करना नहीं आता मुझे
खुद की आंसुओं को देखकर मुस्कुराता रहा हूं मैं..
जिन्हें लगाया अपना समझकर सीने से
उन्हीं से ठोकर खाता रहा हूं मैं..
गया तो बहुत से महफिलों मैं
खुद को अकेला पाता रहा हूं..
कोई पूछ ना दे खामोश क्यों हो
इसलिए आंखों से आंसू छुपाता रहा हूं..
हर किसी ने गम दिया जिंदगी में
बस उसे देखकर मुस्कुराता रहा हूं मैं..