मुस्कुराने ना देगा यह जालिम जमाना।
सुनाते हो क्यों अपने गम का फसाना।।
धोखे का दिल तेरा जब अक्स बहेगा।
तेरी बेचती पे ये बेदर्द हंसेगा ।।
एक पल की रोशनी के लिए अपना घर ना जलाना।
मुस्कुराने ना तेरा यह जालिम जमाना।।
बहारों के मौसम में सारा आलम अपना लगता है।
कांटों के जंगल में कोई साथ नहीं चलता है।।
बेवफा लोगों के साथ क्या वफा निभाना।
मुस्कुराने ना देगा यह जालिम जमाना।।
खुश नसीब है वह जिसे हम दर्द मिला होगा।
चमन को बागवान से क्यों गिला होगा।।
हंसते हुए चेहरे को कभी ना रुलाना।
मुस्कुराने ना देगा यह जालिम जमाना।।