वह आवारगी थी बचपन की..
 कभी इस गली तो कभी उस गली..।।
 तभी इस पेड़ से उस डाली..
 वह आवारगी थी बचपन की..।।
 हाथ पकड़कर चलते थे खो ना जाए उस गली..
 वह आवारगी थी बचपन की..।।
 गांव का वह मेला..
रिमझिम बारिश मैंने भी खेला..।।
 टूटी फूटी छप्पर गांव मोहल्ले की..
 वह आवारगी  थी बचपन की..।।
 जब भी याद आती है बचपन गांव में मेरे..
 आंख भीग जाती है लोग कैसे होंगे छोटे घर में मेरे..।।
 बहुत दिन हुए अपने नजरों से देखे हुए उसे..
 उसी पीपल के छाव पर खेल कर बड़े हुए मेरे गांव के बच्चे..।।
 क्या बताऊं यादें बहुत है समेटे गांव की गलियों की..
 क्योंकि वह आवारगी थी बचपन की..।।

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